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________________ २०२] [गोरा बादल चौपई कवित्त नव सत सज्झे नवल, नारि बादलपै आई, अज हुँ न रम्यौ मुझ साथ, चल्यौ तू करण लड़ाई । अजहुँ न माँणी सेझ, घाव-नख नाहि चमके, कुचन चोट नहि सही, सहै क्युं सांग धमके। छुट्टत नाल गोला तहाँ, तुवि धड़ सिर उप्पर, नारि कहै हो राव, इम मता देखि दलते मुडै ।।१०४।। कंता रिण मे पैसताँ, मत तू कायर होइ। तुम्है लज्ज, मुझ मेहणो, भलो न भाखै कोइ ।।१०।। जो मूवा तो अति भला, जो उबऱ्या तो राज । बेहुँ प्रकारा हे सखी, मादल घूमै आज ॥१०६।। कायर केर माँस कों, गिरज न कबहुँ खाइ। कहा डंख इन मुक्ख को, हम भी दुरगति जाइ ॥१०॥ कवित्त मेर चलै, ध्र चलें, भाण जो पच्छिम ऊर्ग, साधु वचन जो चल. पंगु जो गिर लगि पूगे। धरण गिड़े धवलहर, उदध मरजादा छोडै, अरजन चूकै बाँण, लिखत वीधाता मोड़ें। बादल कह, री नार, सुण, एहवो जो होतब टलै, न्दा। न, पूठ देऊ नहीं, बादल दलसूं ना चलै ।।१०८।।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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