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गौरा वादल चौपई ]
[१८६ राघव कहै नरिंद सुन, त्रीय जाति है च्यार, चित्रन हस्तन संखनी, पदमनि रूप अपार ॥३३॥
(अथ पदमनी वर्णनम् ) पदमनि के परस्वेद से, कसतूरी की वास, कमलगंध मुख तें चले, भमर तजत नहिं पास ।।३४।।
कवित्त पदमगंध पदमनी, भमर चहुंफेर भमत अत, चद वदन, चतुरग, अंग चंदन सो वासत । सेत, स्याम अरु अरन, नयन-राजीव विराजत, कीर चुंच नासिका, रूप रंभादिक लाजत । गुणवंत दत दाडिम कुली, अधर लाल, हीरा दसन, आहार पान कोमल अधिक, रस सिंगार नव सत वसन ॥३॥ पान हुते पातरी, पेम-पूरण सू लाजत, भुन म्रणाल सुविसाल, चाल हंसागति चालत । चंपावरण सुचग, सूर ऊजासी भाले, पदम चरण तल रहै, निरख सुरनर मुनि भाले । हर लंक, अंग चंदन-वरन, नार सकल-सिर मुगटमणि, अल्लावदीन सुरताँन सुण, पदमन लच्छन एह भणि ॥३६।।
(अथ चित्रणी वर्णनम् ) चपल चित्त चित्रणी, चपल अति चंचल नारी, कवल-नैन कटि मीन, वेण जू नागन कारी।