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[गोरा वादल चौपई
नंग सब तज वनवास पास राघव के आए, सुणे राग धर कॉन साह म्रग कहूँ न पाए। आयो सु तहाँ अल्लावदी, देख चरित अचरज भयो, उतर तुरंग से साह तव, राघव के आगे गयो ।॥२७॥
दहा रीझ्यौ साह सुराग सुनि, राघव को कह ताम, दिलिपति हम तुम सों कहै, चलो हमारं धाम ॥२८॥ हम वैरागी, तुम ग्रही, अर प्रथवी पतिसाह, हम तुम ऐसा संग है, जैसा चंद कुराह ।।२६।। हठ कीनो पतिमाह तव, राघव आन्यो गेह, राग रंग रीझ्यो अधिक, दिन दिन अधिक सनेह ||३०||
कवित्त एक दिवस नर काइ, ससा जीवत ग्रह ल्यायो, पातिसाह ले तब, गोद ऊपर बैठायो। ता पर फरें हाथ, अधिक कोमल रोमावल, यात कोमल कछु, कहो राघव गुण-रावल । तब हाथ फेर राघव कद, यात कोमल सहस गुण, पदमावति-देह, विप्र उचरं, पातसाह वरि कान सुण ॥३॥
व्याम बुलाए अलावदी, पूछत वात प्रभात, मास्त्र विधि जाणो सकल, त्रियकी कितनी जात ||३२||