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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल सबंध खुमाण रासो
लोह छकार ऊडवें, इसा लगाया हाथ । पोधर खेत पछाडियो, सारो असपति साथ ।।११।। रह चवीं सारा कद [सु, ऊभो असपति आप । जा नवि खेस्यो वादले करी गुजाहल ताख ॥१२॥ खल गलिया वादल खगें, पूर हसम खुरमांण । सांमद जाणउ तान सुत, पीधा चलू प्रमाण ||१३॥ पकड्यो असपति वादलें, एकल म ल ल अबीह । मेगल हदा मग दले, गाल वजावें सीह ॥१४॥ फिर छोडे पकडे फिरें, नाच नचावें तेम । रस लागो रामत रमे, भोला बालक जेम ॥१५॥
कचित्त सुण वादल कहे साह, राह ही भ्रम रख्खो। सांमधग्म सुरतान, अकल उसताद परख्खो ।। तुसांमंत सकजह, बुद्धि बल अकल दुवाहो । तुं ही ढाल हीदवाण, तुंही रावत खग वाहो॥ गोरिल सरगि अपकर वरी, तुम दुनी मे यस सुनहुं । पतिसाही दला लाइछरा, बहू भई जब वस करहुं ॥१६॥
दूहा - भ्रम राख्यो राख्यो घणी, (ख)खी पदमणि पूठ । मे। अव रख्खहुँ मेरी अदव, कहें आलिम सुण दूठ ॥११॥ मेरे लाल [तू] झूझे बरो, ए दुनियाण उकन । भातीजें काको भिडे, दीधो न्याव विगत्त ॥२८॥