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१७४] [रत्नसेन-पद्मिनी गोरा दादल संवन्ध खुमाण मासो
वादल जेहा सूरमा, क्यां चूकें अवसाण ||८|| रिण डोहें फिर फिर खला, धडा धपावें धार । पारीसें पिडहार ज्यु, नह भूलें मनुहार ६०॥ घड पति साई वींदणी, मद जोवन मयमंत । मुझ मन परणेवा तणी, खरी चिलग्गी खंत ।।१ सुण गोरा वादल कहें, तुंसामत मकन । तुंदल नायक हींटुआ, तु(झ) मुंजें रिण लज ६२|| तु सीध चाढ़ण सूरमा, उजवालण कुलबट्ट। तु वाधे पतिसाह सुपेतों डर रणवट्ट ||१३|| वांधे मोड महावली, वाधे असि गज गाह। सिर तुलमी दल घालिया, उहियां खाग दुवाह ||१४|| केसरिया वागा किया, भुज ऊवांणे खाग । जांणक भूखो केहरी, जुड़वा नाई खाग ||६| सूरज हुँत सलाम कर, वलि मुछा वल घाल । सु पतीसाहा सम चढ़े, ओयो रणवट जाल १६|| भरे डांण दईवान भति, राम राम मुख रट्ट । अकल ते रण ऊरियो, माझी लोह मरद ॥६॥ रुडें नगारा सिंधूआं, रिण सूरातन र[स] स । मद आयो गोरो मरद, अडियो सीस डरस्स ।।६८॥ आवें असपति आगलें, इसो उहायो खाग । पायर पाखल पाधरें, जाणे हणुमत वाग |