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ओर कोई संकेत नहीं पाते। किन्तु सकेत वास्तव मे तो अत्यधिक अस्पष्ट नहीं है। अन्यथा इसमें हुदहुद, शेवा, सुलेमान आदि के लिए विशेष कारण ही क्या था ?
यह अवतरण अन्य दृष्टियों से भी महत्वपूर्ण है। यह ठीक है कि इससे पद्मिनी के आरम्भिक जीवन पर कुछ प्रकाश नहीं पडना। न हम इसके आधार पर यही सिद्ध कर सकते है कि गोरा बादल पद्मिनी को छडा लाए थे। किन्तु चित्तोड़ में अन्ततः क्या हुआ इसकी झाँकी इसमे अवश्य प्रस्तुत है। चित्तोड का घेरा छः महीने तक चला । जब बचाव की आशा न रही ता राजपूत दरवाजा खोलकर शाही शामियाने की
ओर बढ चले । खजाइनुल फतूह से ही सिद्ध है कि अला__ उद्दीन के हाथो 'हजारों' विद्रोही मारे गए। किन्तु रत्नसिंह
या तो पकड़ा गया, या उसने आत्मसमर्पण किया। दुर्ग वादशाह के हाथ आया किन्तु जिस वलकिस की आशा में युग का सुलेमान वहाँ पहुंचा था, वह उस समय समाप्त हो चुकी थी। वह किसी भी हुदहुद की पहुंच के बाहर थी।
रत्नसिंह की इस अतिम गति का कुछ आभास हमे नाभिनन्दन जिनोद्धार ग्रन्थ से भी मिलता है जिसका रचनाकाल सन् १३३६ ई० है। उसमे अलाउद्दीन की अनेक विजयों का वर्णन करते हुए कक्कसूरि ने यह भी लिखा है कि उसने चित्रकूट के राजा को पकडा, उसका धन छीन लिया, और १-गाही शामियाने पर कूच का वर्णन प्राय हर एक जौहर के बाद है।