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रत्नसेन-पद्मिनी गोरा बादल संबन्ध खुमाण रासो] [१४१ में लडणे कुं आया नहीं, गढ़ देखण की हे दल सही।। न धरो मन में खोटा खेद, मेरे मन नाही छल भेद ॥५॥
कचित्त कहे रतन सुण साह, चक करि लाह न खटी हुँ। रूक वाव वज्जही, बादल जिम तुम फट्टिहु। तन गुमांन मग धरहुकरहु जिण कोइ कपट्टह ।' आए चली आंगणे, तास हम लाज निपट्टह। गज गाह बाँध ऊमें सुहड, मूछ मरोडी मगज भरि । हम हुकम होत सम फोज सिर, पड़िही कंस सिर वीजड़ि ।।६।।
चौपाई आलम जंप सुण राजान, घर आया बहु दीजें मान। थोडा होवें होवें घणा, झेली लीजे निज पाहुणा ।।७।। धान तणो छ आज सुकाल, घणा घणा काइ करें भूपाल । हम मिलवा आवें ऊमही, लड़वा कुहम आवे नही ।। ८॥ राय कहें साभल पतिसाह, भलें पधारो आलिम साह ।। वलि तेडावो जाणो जिके, पिण लघु बोल म बोली वक्रे॥६ ।। बोलें बोल विहुं हुआ खुसी, हाथें ताली दीधी हसी। माहो माह हुओ संतोष, राय तणें मन मिटियो रोष ।।१०।। करि दरगह वेंठो सुलतांन, आगें ऊभा सबे राजान । फेरवीजें घोडा गजराज, रुपक भेंट करें कविराज ॥१॥ रतन गया तव महिला भणी, भगत करावण भोजन तणी। पदमणि प्रति राजा इम कह्यो, आलम सुं जिम तिमरस रह्यो ।१२।