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गोरा वादल कविच]
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उचरइ विप्र ऐरिसह वयण, राउ एक प्रतिज्ञा हूँ करू, पइहराउं लोह तुझ पय कमल, तव चित्रकोट बोहड फिरूं ॥११॥ चित्रकोट तव छंडि चित्त एह वयण विचार्य, करवि होम आउध,' सवद' अइसउ संभारउ । वीस भवन महसाण, मंत्र योगिनी आराधी, कहो नइ देव कुण काज, आज ए विद्या साधी। उचरइ विप्र स्वामिनसूणि, एह भेद मुझ अपीइ, आगम निगम सहुइ लहूँ, तउ वाचा दे थर थपीइ ॥१२॥ तव तूठी योगिनी, हुई प्रसिद्धि प्रसनी, ब्रह्म रुद्र करि वाच, वाच निश्चल करि दीन्ही । जिहा हकारइ मोहि," , तोहि साचउ करि जाणइ, आदि अन्त उतपत्ति, विपति तो सहु पीछानइ । आस्थान आप जोगिन हुइ, विप्र पथ आश्रम कर्यउ, आणद अंग ऊलट घणइ, तब डीली गढ संचर्य ॥१३॥ वचन कला उतपन, पवन छतीस मिल्या तिहा, राय राणा मडलीक, खान ऊ बरे खडे तिहाँ । मन सकेत पूरवइ, जेह कछु मन माहि इछइ', जे धन कारन धाय, आय विप्रन कूपूछा। बात सुनी सुलतान एह, वे वजीर सचा कहर, दरवेश वेस अलावदी आय पउहतउ विन पोह ।।१४॥
१ आहुत्त । २ मंत्र । ३ घिव कहइ। ४ परतक्ष । ५ सोहि । ६ दिल्ली। ७ ऊमरा । ८ अच्छइ ।