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________________ १०६ ] [ पद्मिनी चरित्र चौपई तसु आग्रह करी संवत' सतर सतोतरे रे, चेंत्री पूनम शनिवार । नवरस सहित सरस संबंध रच्यो रे, निज बुद्धि ने अनुसार।।१२ श्री जिनमाणिकसूरि प्रथमशिष्य परगड़ा रे विनयसमुद्र बड़गात । तास सीस वड़वखती जगमई वाचियइ रे, । श्रीहर्पविशाल विख्यात ।।१३।। तास विनेय चवद विद्या गुण सागरु रे, वाणी सरस विलास । जस नामी पाठिक श्रीजानसमुद्रजी रे परगट तेज प्रकाश ॥१४॥ साध शिरोमणि सकल विद्या' करि सोभतारे, वाचक श्री ज्ञानराज । तास प्रसादे शील तणा गुण संथुण्या रे, श्रीलब्धोदय हित काज ॥१॥ सामिधरम ने शील तणा गुण सामल्या रे, पूमै मननी आस । ओछो अधिको जे कह्यो कवि चातुरी रे, मिच्छादुकड़ तास ॥१६॥ नव निधनै वलि अष्ट महा सिद्ध संपदा रे, दूर मिट दुख दंद। लब्धोदय कहै पुत्र कलत्र सुख संपजे रे, शीयल सफल सुख कद ॥१७॥ गाथा दूहा ढाल आठ से अतिनंद सीअल प्रभाव संपदा इम जंपड़ लब्धानद ॥१॥ १ चैत्र सुकल तिथि पचनी मृगशिरने वुधवार २ नवऊ ३ गुणेकरि ४ सपदा ।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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