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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[१०५ श्री रावलजी छूटा मोटा कष्ट थीरे, सुख हुवो गढ़े जेह । बड़ो पवाड़ो खाट्यो गोरे वादलै रे, शील प्रभावै तेह ॥ २ ॥ शील प्रभाव नासे अरि करि कसरी रे, विपधर जलण जलत । रोग सोग ग्रह चोर चरड़ अलगा टले रे, पातिग दूर टलंत' ॥३॥ श्रीसुधर्मासामि पाट परंपरा रे, सुविहित गच्छ सिणगार । श्री खरतर गच्छ श्रीजिनराजसूरीसरू रे, आगम अरथ भंडार ।।४।। तस पाटि उदयाचल दिनकरुरे, श्री श्रीजिनरंग वखाण । रीझवियो जिण साहजहाँ दिल्लीसरू रे, करिदीधउ फुरमाण ॥शा तास हुकम संवत सतर छीडोतरे, श्री उदयपुर जाण । हिन्दूपति श्रीजगतसिंह राणो जीहा रे, राज करै जग भाण ।।६।। तास तणी माता श्री जवूवती रे, निरमल गंगा नीर । पुण्यवत पट दरसण सेव करइ सदारे, धरम मूरति मतिधीर ॥७॥ तेह तणे प्रधान जग में जाणिइं रे, अभिनव अभयकुमार। केसरी मत्री सुत अरि करि केसरी रे, हसराज हितकार ।। ८ ॥ जिणवर पूजा हेतइ जाणि पुरंदरु रे, कामदेव अवतार । श्रेणिकराय तणीपरि गुरुभगता सही रे, सिंह मुकट सणगार ।।।। पाट सात पाछइ जिण देस मेवाड़मइंरे, थाप्यो गच्छ थिरथोभ । कटारिया कुलदीपक जग जस जेहनउ रे,
श्रीखरतर गच्छ शोभ ।।१०।। तसु बधव डुगरसी ते पण दीपतउ रे, भागचंद कुल भाण । विनयवंत गुणवंत सुभागी सेहरउ रे, वड़ दाता गुण जाण ॥११॥
१ पुलंत।