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________________ ६४ ] [ पद्मिनी चरित्र चौपई mmmwww गढ मे पहुंचि वजाडयो, जागी ढोल निसाण रे लाल। थे' पहुंतो म्हे जाणस्या, साचो ए सहिनाण रे लाल ॥१०॥०॥ वात सुणि हरखित थयो, तुरत गयो गढ माहि रे लाल । कुशले छूटा कष्ट थी, जाणे सूरिज मूक्यो राह रे लाल ॥११॥ आणंद मन माहि ऊपनो, मन हरपित पदमणी नारि रे लाल। मगढ मे रंग वधामणा, धवल मंगल जय जय कार रे लाल ॥१२॥ पदमणी शील प्रभाव थी, वले वादल वुद्धि प्रमाण रे लाल । 'लालचंद' कहै जस घणो, कुशले छूटा श्री राण रे लाल ॥१३॥ दूहा सहनाणी पूरण भणी, हरषित तणो सहिनाण । नोवति ढोल वजाडिया, घणा घुरइ नीसाण ॥१॥ सुणि बाजा गाज्या सुभट, उठ्या योध अनम्म । नवहथा जित भारथा, माणस रूपी जम्म ॥२॥ राघव मुख कालो हुओ, नवि लिखीयो परपच । कूड़ घणो कीधो हुँतो, सीधो काम न रंच ॥३॥ सामी काम हणमंत जाणयो, गोरो गुणह गंभीर । अरिदल देखी उलस्यो, सूरातनह सरीर ॥४|| सुभट धस्या हुइ सामठा, मुखि गोरउ रिम राह । अंग अंगरखी सजी, वगतर सबल सनाह ॥५॥ १ तब २ जागी ३ हनुमानसो।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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