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________________ ५४] [पद्मिनी चरित्र चौपई हरखित चित आवै हिवरे, दिलीपति सुलतान । 'लालचन्द' मुनिवर कहै रे, सुणयो हिव चतुर सुजान रे॥१७॥ दूहा ऊंचा अमर विमाण सा, मोटा महेंल अनेक । गोख झरोखा जालिया, धोल ति शुद्ध विवेक ॥१॥ सरग मृत्य पाताल सव, सुन्दर वन आराम । चात्रक मोर चकोर वहु, चितरीया चित्राम ॥२॥ कनक थंभ कलसे करी, मंडित मोहण गेह । मिगमगि ज्योति जडाव की, चलकती चन्दरुएह ।।३।। रंगित मंडप माहि हिव, जाजिम लांबी जेह । वारु कर वीछामणा, मोल घणा छ जेह ॥४॥ मोखमल मोटा मोल रा, पंच रग पटकूल । जरी कथीपा जुगति सु, सखर विछावे सूल शा तरहदारविण मई ठव्यो, सिंहासण तिण' वार । माणिक मोती लाल बहु, जड़ीया रतन अपार ॥६॥ तिहां आवी बैठा तुरत, सवल साथ सुसाहि । चितई मानव लोक मे, आणी भिस्त अल्लाह ॥७॥ भोजन सत्कार ढाल (५) अलवेल्या नी पहरी पटोली पाभड़ी रे लाल, दासी सुन्दर देहः मन मान्या रे एक आधी आसण ठवे रे लाल, रूप अधिक गुण गेह, मन०॥ १ सुखकार । -
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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