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[ पद्मिनी चरित्र चौपाई
रावण घरि पदमणि सुणी रे लाल,
अउर नहिं ससार रे सो०। साहि घरे सव संखिणी रे लाल,
क्या' कहिह अविचार रे सो० ॥१८॥ च०|| माहोमाहि सकेत स्यु रे लाल,
भाट' खोजें कियो वाद रे सो। 'लालचंद' मुनिवर कहै रे लाल,
सुणता उपजे स्वाद रे सो० ॥१|| च० ॥
दोहा हसि के साहि कहै इसो, क्युवे खोजा खूब । हम महले सब संखणी, नहिं पदमणि महबूव ॥ १॥ तापरि खोजो वीनमै, बूझो राघव व्यास । सव लक्षण गुण पदमणि के, जाण शास्त्र अभ्यास ॥२॥
साहि कह्यो राघव भणी, स्त्री के केती जाति । कैसा लक्षण पदमणी, साच कहो. ए वात ॥३॥
सुविचारी राघव कहै, स्त्री की चारु जाति । 'पद्मणी' चित्रणी हस्तणी संखणी' असी भाति ॥४॥
स साहि रुस्यो तिण वार रे सो २ बामण ३ नारि का