________________
( २४८ ) धूतारो कुण गयो धूतरी, ते कहो, ते० नाम खरी । मो० । कोई अपहरि गयो कपट विशेषड, पणि हुई साधवी वेपइ ||७|मो० पाली आणि राखिसि घरमाहे, देपिसि, दे० दृष्टि उछाहे ||८|| मो० इम विलाप सुणि तिहा आवइ, लखमणि पणि ल० समझाचि ।।६।। मो० म कहि वचन एहवा तु भाई, तइतजी मुज्झतउ भउजाई ॥१०॥मो० हिव वेखास किया क्या होई, थूकि गिलइ, थू० नहि कोई ॥१शा मो० धन सीता जिण संयम लीघो, दुखु जलंजलि दीधो ॥१॥ मो० आप तरई अवरानई तारई, कठिन क्रिया, क० व्रत धार।।१३।।मो० एहन हिव परणाम करीजई, भव समुद्र, भ० तरीजई ॥१४॥मो० इम रामचंद भणी समझायो, राम संवेग, रा० मइ आयो ॥१।। मो० कुश लव खेचर साथइ लेई, लखमण राम, ल० एवेई ।।१६।। मो० गजि चडि गया मननइ उल्लासइ, सकलभूपण, स० मुनि पासइ ।।१७।। नवमा खंडतणी ढाल त्रीजी, सुणत सभा सहुरीमी ।।१८। मो० समयसुंदर कहइ सीता साची, वेद पुराणे रे वाची ।।१।। मो०
सर्वगाथा ॥१३॥ दहा १० सकलभूषण श्री केवली, साथ गुणे अभिराम । पंचाभिगमन साचवी, तेहनइ कियो प्रणाम ||१|| आगइ वइठा आविनइ, लखमण राम सकोइ । तिहा बइठी थकी ओलखी, सीता साधवी होइ ॥२॥ तेहवइ केवली देसना, देवा सांडी तेथि। लखमण राम सुग्रीव सहु, परपदा वइठी जेथि ।।३।।