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( २४७ ) राम देखि सीता तणा, स्याम भमरते केस । मूरछागत धरती पड्या, आणी मन अंदेस ॥६॥ चंदनपाणी छांटिनइ, घाल्या सीतल वाय । बहि झालि बइठा कीया, राम कहइ हाय हाय ॥ १०॥ तेहवइ तिहा आयोवही, सर्वगुप्ति मुनिराय । तिण दीक्षा दीधी तुरत, सीतानइ सुखदाय ॥ ११॥ । चरणसिरी तिहा पहुतणी, तेहनइ सुपी एह। सीता पालइ साधवी, संयम सूधो जेह ।। १२ ॥ पांचसुमति त्रिह गुपति सुं, निरमल न्यान चरित्र । साधई सीता साधवी, ईरत अनई परत ।। १३ ।।
सर्वगाथा ॥११४॥
ढाल ३
॥ राग कनडो॥ 'ठमकि-ठमकि पायनेउरी वजावइ, गजगति वाह ग० लडावइ ॥१॥ रंगली मालणि आवइ ॥' ए गीतनी ढाल ॥ रांमचंदन देखइ सीता, नयणे नीर । न० वरसीता ॥१॥ मोहि सीता नारि मेलावो, विरही राम करइ पछतावो।
सीतानइ । सी० समझावो। मो० आं०॥ कुण पापी सीता गयो लेई, कुण गयो, कु० दुख देई सामो० दीखईनहीं सीता किम नयणे, बोल नहीं, बो० किमवयणे ||३|| मो० लोच कीयो केणि पाछी आणो, कुणलेणहारा, कु० पिछाणो ॥४मो० देवतणो देवदत्तण फेडु, राजा मारि उथेडु ॥५।। मो०