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कुमर कहइ नारद कहउ, कुण ते लखमण राम । वली वात कहि पाछिली, नगरी नाम नई ठाम ॥३॥ कुमर वेउ कोपइ चड्या, करिस्या रांम सुं वेढि । लेस्यां वयर माता तणो, रण मई नाखिस्या रेढि ॥४॥ वनजंघ नई जई करो, अम्हे जावां छां तेथि । कहइ वनजंघ जय पामि नई, वहिला आविज्यो एथि ।।५।। तुरत भेरि वजवाइ नई, कुमर चड्या कोपाल । हय गय रथ सेना सजी, मिल्या सीमाल भूपाल ।।६।। आडम्बर सुंचालता, सुणि सीता निज वात । रामचन्द प्रियु गुण समरि, मन मईदुख न मात ॥७॥ सीता रोती इम कहइ, अनरथ होस्यइ एह। सिद्धारथ कहइ भय नहीं, गुण ऊपजिस्यइ छेह ॥ ८॥ कुमर कहइ माता प्रतई, कां रोवइ हे माय । दीसइ दीन दयामणी, विलखइ बदन विछाय॥६॥ तुझनई कहि किण दूहवी, अथवा वेदन व्याधि । अम्हथी अविनय को हुवो, अथवा काई उपाधि ।। १०॥ कहइ सीता जे थे कह्या, कारण नहिं ते कोइ । पणि झूमो छो बाप सूं , ए मुझ नई दुख होइ ।। ११ ।। वाप वेटा बिहु मांहि जे, भाजय मरइ संग्राम । जिम तिम दुखु मुज्झ नइ, कुढग पड्यो ए काम ॥ १२॥ पुत्र कहइ सुणि मातजी, म करिसि दुख लिगार। राम अनइ लखमण प्रतइ, नहिं मार निरधार ।। १३ ।।