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परणावी आडम्बर घणई, केइक दिवस रह्या सुखपणई । इहाथी चाल्या कुमर अवीह, साहसीक सादूला सीह ॥ २४ ॥ देस प्रदेस तणा राजान, हटकि मनावी अपणी आण। गंगा सिंधु नदी ऊतरी, साध्या देस दिसोदिस फिरी ।। २५ ।। कासमीर कावलि खंधार, गिरि कैलास तणा वसणार । जवन सबर बब्बर सकराय, सहु साध्या वनजंघ सहाय ।।२६ ।। सगले ठामे जय पामीया, कुसले खेमे धरि आवीया। पइसारो कीधो परगट्ट, नगर माहि थया गहगट्ट ।। २७ ॥ माता नई कीधो परणाम, हीयडइ माता भीड्या ताम । पाछली सगली पूछी वात, वनजंघ कह्या अवदात ॥ २८॥ हय गय रथ पायक परवार, तेह तणो लाभइ नहिं पार । राजा चाकरी करइ हजूर, कुस लव केरो प्रवल प्रडर ।। २६ ।। रूपवंत नई रलियामणा, कुस लव वेऊं सोहामणा। राज रिद्धि गई अतिहि बाधि, वे भाई रहइ सुखइ समाधि ।। ३०॥ आठमा खंड नी चउथी ढाल, कह्यो कुस लव संबन्ध विचाल। समयसुंदर कहइ हुयइ जो पुण्य, राजरिद्धि पामीयइ अगण्य ।। ३१ ।।
सर्वगाथा ||२२०॥
दहा १८ वलि आव्यो नारद तिहां, अन्य दिवस रिपिराय । आदर मान घणो दीयो, कुस लव ऊभे थाय ।। १ ।। इम नारद आसीस घइ, सीमो वंछित काज । लखमण राम तणा तुम्हें, लहिज्यो अविचल राज ॥२॥