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( २२५ ) पणि सेना भांजिस सही, करिसि मान नो भंग। तुं बइठी आणंद करि, सुणिजे जे करूं जंग ।। १४ ॥ इम माता समझाविनइ, गज ऊपरि चड्या गेलि । नगर अयोध्या सामुहा, कुमरे दीधी ठेलि ।। १५ ।। दस हजार नर विपम सम, धरती करतां जाइ। करि कुठार तरु छेदता, पूठ सेना थाइ ॥ १६ ॥ कटक घणो किहां पार नहि, बहुला पडइ बाजार । जोयण जोयण अन्तरतरई२, धइ मेल्हाण कुमार ॥ १७ ॥ नगर अयोध्या ढकडा, जितर गया कुमार। तितरई खबरि किणइ कही, आया कटक अपार ॥ १८ ॥
सर्वगाथा ।। २३८॥ ढाल ५
॥राग तिलंग धन्यासिरी ॥ 'कोइ पूछो वांमण जोसी रे, हरि को मिलण कदि होसी रे ।। १ ।।
॥ एगीतनी ढाल || केइ आया कटक परदेसी रे, राम की अयोध्या लेसी रे॥१॥ के० कोप्यो राम कहइ कोई रे, अकाल मरणहार होई रे॥२॥ के० राम हुकम सेवक नई दीधो, सिह गरुड वाहन सज कीधो रे॥शाके० सामंत भूपाल बोलाया रे, रामचंद पासई मिलि आया रे ॥४॥ १० अति सवल कटक राम पासइ रे, नारद देखी नई विमासइ रे ॥५॥ के० भामंडल पासइ रिषि जाई रे, सगली युद्ध वात सुणाई रे॥६॥ के०
१-हेलि २-आतरइ।
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