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( २०६ ) ढाल बोजी
॥ राग मारुणी॥ मांखर दीवा न वलइ रे कालरि कमल न होइ। छोरि मूरिख मेरी बाहडिया, मीया जोरईजी प्रीति न जोइ । कन्हइवा वे यार लवासिया, जोवन जासिया वे, वहुर न आसिया। ए गीतनी ढाल । ए गीत सिंघ माहे प्रसिद्ध छ।। सीता विलाप इसा करइ रे, रोती रांन मझारि। विण अपराध का वालहा, मुँनई छोडी डंडाकार ।।१।। पियारा हो वाल्हेसर रामजी, इम किम कीजयइ हो, छेह न दीजयइ ।। आकणी ।। हा वल्लभ हा नाहला रे, हा राघव कुलचंद।। मुम अवला नइ एवडउ, तइ का दीधउ दुखदंद ॥२॥ पि० विण पति विण परिवार हुँ रे, किम रहुँ अटवी मॉहि । कुण सरणो मुझ नई हिवइ रे, जा रे जीवित जाहि ॥३।। पि० साबासि लखमण तुझ नई रे, कां तइ उपेक्षा कीध । तुं माहरो सील जाणतो का, राम नई हटकि न लीध ॥४॥ पि० भउजाई नई वालहो रे, देउर हासा ठाम । तुझ सुं पणि कहि मई कदे रे, हासो कीधो सकाम ||५|| पि. हे तात तई राखी नहीं रे, हे भामंडल भाइ । सासरइ पहिड्यइ पाधरी रे, अस्त्री पीहरि जाइ ॥६॥ पि० तउ पणि तात राखो नहीं रे, नाण्यो पुत्री सनेह । पहिड्या पीहर सासरा रे, मुम संकट पड्यो एह ॥७॥ पि०
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