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( २०३ ) अन्य दिवस श्रीराम ॥ स० ।। नष्ट चरित नगरी मई रातई नीसख्या रे लो। स०॥ किणही कारबारि ॥ स० ॥ छाना सा ऊभा रहि कान ऊंचा धत्यारे लो ।। १६ ।। स० ॥ तेहवई तेहनी नारि ॥ स०॥ वाहिरथी असूरी आवी ते घरे रे लो । स०॥ रीस करी भरतार ॥ स०॥ अस्त्रीनइ गाली दे ऊठ्यउ बहुपरे रे लो ॥ २०॥ स० ॥ रे रे निरलज नारि ॥ स०॥ तुं इतरी वेला लगि बाहिर किम रही रे लो।। स० ॥ पसिवा नहि घुमांहि ।। स० ॥ हुँ नहिं छु राम सरिखउ तुं जाणे सही रे लो ।। २१ ।। स०॥ सुणि कुवचन श्रीराम ॥ स०॥ चिंतविवा लागा मुझ देखोद्य मेहणो रे लो ।। स०॥ खत उपरि जिम खार ।। स०॥ दुखमाहे दुख लागो राम नइ अति घणो रे लो ।। २२।। स०॥ राम विचास्यो एम ॥स०॥ अपजस किम लोकां मांहि एहवउ ऊछल्यो रे लो ।। स०॥ सीता एहवी होइ ॥ स०॥ सहु कोई वोलइ लोक कुजस टोले मिल्यो रे लो ॥२३॥स० ॥ पर घर भंजा लोक । स०॥ गुण छोडी अवगुण एक वोलपारका रे लो ।। स०॥