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कहइ कामिणी वलि काई । स० ।। आणीतउ मानी कां रांम सोता भणी रे लो। स०॥ कहइ वलि वीजी कांइ ।। स०।। सीता सुं पूरवली प्रीति हुंती घणी रे लो ।। १४ ।। स० ॥ जे हुयइ जीवन प्रांण ।। स० ॥ ते माणस मूकंता जीव वहइ नहीं रे लो ।। स०॥ अपजस सहइ अनेक ॥ स०॥ प्रेम तणी जाइयइ किम वात किण कही रे लो॥ १५ ।। सक। एक कहइ हित वात ॥ स० ॥ लोकां मई अन्याई नृप राम कहीजीयइ रे लो ।। स०॥ कुल नइ होइ कलंक ॥स०॥ ते रमणी रूडी पणि किम राखीयइ रे लो।। १६ ।। स० ॥ ऊखाणउ कहइ लोक ॥ स०॥ पेटइ को घालइ नहीं अति वाल्ही छुरी रे लो।। स० ॥ राम नई जुगतउ एम ।। स०॥ घर मइ थी सीता नई काढइ बाहिरी रे लो ।। १७ ॥ स०॥ सेवके एहवी वात ॥ स०॥ नगरी मइ साभलिनइ राम आगइ कही रे लो ।। स० ॥ राम थया दिलगीर ॥ स०॥ एहवी किम अपजस नी बात जायइ सही रे लो॥ १८ ॥ स०॥
१-न्याई।