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( १६६ ) एहवइ सीता नारि नी, फुरकी जिमणी आंखि । कहिवा लागी कंतनई, मुख नीसासा नाखि ।। ११ ।। कहई प्रीतम ए पाडुई, असुभ जणावइ एह। . एह उपद्रव जिम टलइ, करि उपचार तुं तेह ॥ १२ ॥ तीर्थस्नान करि दान दे, भजि भगवंत अभिधान । सीता सगलो ते कियो, पणि ते करम प्रधान ।। १३ ।। अस्त्री माहे ऊछली, एहवी सगलइ वात । पूर्वकर्म प्रेरी थकी, सीता नी दिन-राति ।। १४ ।।
ढाल १
॥राग मारुणी ॥ अमा म्हाकी चित्रालंकी जोइ। अमां म्हाको । मारुडइ मइवासी को साद सुहामणो रे लो॥ ए गीत नी ढाल । सहियां मोरी सुणि सीता नी वात । सहिया मोरी। आपण घरि रावण राजीयइ रे लो। स०।। ते कामी कहवाइ ॥स०॥ ते पासइ बइठा पणि लोक मई लाजीयइ रे लो ।। १।। स०॥ तीता सतीय कहाइ । स०॥ पणि रावण भोगव्यां विण सहो मुंकइ नही रे लो ।। स०॥ भूख्यो भोजन खीर ।। स०॥ बिण जीम्या छोडइ नही इम जाणउ सही रे लो ॥११॥ स० ॥
१-नउ नाम