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( १६८ )
[खण्ड ८॥
दूहा १४ आठ प्रवचन माता मिल्या, सूघट संयम होइ। आठमो खण्ड कहूं इहां, सलहइ सील स. कोइ ।। १ ॥ इम चिंतवतां राम नई, अन्य दिवस प्रस्तावि। सीता डोहलो उपनउ, गरभ तणई परभावि ॥२॥ जिनवर नी पूजा करूं, दीना नई धुदान । सूत्र सिद्धन्त हे साभलु, साधु नइ घुसनमान ।।३।। तिण डोहलइ अणपूजतई, दुर्वल थई अपार । रामई मिणदूमणी, दीठी सीता नारि ॥४॥ रामइ पूछयो हे रमणि, तुझनई दूहवी केण । किंवा रोग को ऊपनो, कइ कारणि अंवरेण ।।५।। जे छइ बात ते मुज्म कहि, कह्यो सीता विरतंत । एहवंउ डोहलउ ऊपनो, ते पहुचाडो कंत ॥ ६ ॥ रांम कहइ हु पूरिस्युं, म करे दुखु लिगाररे। तुरत मंडावी देहरे, पूजा सतर प्रकार ।। ७ ।। देतो दान दीना भणी, मुनि वादिवा निमित्त । अंतेउर सुं चालियो, राम धरम धरि चित्त ।। ८॥ देहरे देव जुहारि करि, पूजा करी प्रधान । गुरु वांदी घरि आवीया, राम सीता बहुमान ॥ ६॥ सीता डोहलउ पूरीयो, धरम सम्बधी तेह । सुख भोगवइ संसार ना, राम सीता सुसनेह ॥ १०॥