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। १८८ ) लभ थी नीचड ऊतस्यो, आयो सभा मझारि । आदर मान घणो दीयो, रामचंद सुविचार ||२|| रामई पूछ्य किहा थकी, आया रिपि कहइ एम। नगर अयोध्या थी कहउ, भरत नइ कुशल छइ खेम ||३|| कुशल खेम तिहा कणि अछड, पणि तिहां अकुशल एह । तुम्ह दरसण दीसइ नही, साल अधिक सनेह ।।४|| सोता रावण अपहरी, लखमण पड्यो संग्राम । इहो थी विसल्या ले गया, दुखी सुण्या श्रीराम ॥५॥ आगइ खबरि का नहीं, तिण चिता करइ तेह । झूरि भूरि माता मरइ, दुखु तणो नहि छह ॥६॥ नारद वचन सुणी करी, लखमण राम दयाल । सहु दिलगीर थया घ[, नयणे नीर प्रणाल ||७|| नारद तुम्हे भलो कीयो, बात कही सहु आय । नारद रिपि संप्रेडियो, पूजी अरची पाय ||८|| राम अयोध्या जाइवा, उछक थया अत्यंत । राम' विभीषण पूछियो, ते वीनवइ वृतांत ॥६॥ . सोलह दिन ऊभा रहो, रामइ मानी बात । भरत भणी मुंक्या तुरत, दूत चल्या परभात ॥१०॥ तुरत अयोध्या ते गया, भरत नइ कियो प्रणाम । सगली बात तिणइ कही, ले ले नाम नइ ठाम ॥११॥ १-राय