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( १८६ ) तेह विसल्या कन्यका, तिहाँ आवी ततकाल । लखमण नइ जीवाडियो, काढी सकति कराल ॥१२॥ लखमण रावण मारीयो, मुंकी पालो चक्र। सीता सु सुख भोगवइ, रामचंद जिम शक्र ॥१३॥ विद्याधर राजा तणी, कन्या स्त्री सिरताज । परणी राम नइ लखमणई, भोगवई लंका राज ||१४॥ भरत दूत नइ ले गयो, माता पासि उल्हास । विहाँ पिणि वात तिका कही, लाधी लील विलास ॥१॥ दूत भणी माता दीया, रतन अमलिक चीर । अति संतोप्यो दूतनई, बेगा आवो चीर ॥१६॥ भरत राम भइया तणो, सुणि आगमन आवाज । पइसारो करिवा भणी, सजइ सामग्री साज ॥१७॥
॥ सर्वगाथा २२६॥ डाल६ ॥ राग मल्हार ।।
वधावारी ढाल भरत महोछच माडियउ, चुहरावी हे गली नगर ममारि। अयोध्या राम पधारिया, पधाख्या हे वलि लखमण वीर ॥अ०॥ गंधोदक छांटी गली, विखस्या हे फूल पंच प्रकार ||१|| अ० केसर रइ गारइ करी, लीपाव्या हे मंदिर तणा वार। मोती चउक पूरावीया, वारि वाध्या हे तोरण तिण वार ||२|| अ०
२-भाया