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( १५४ ) प्रत्युपकार मई तुज्झ नई जीहो, करिन सक्यो ते सालइ घणु वोल के । नही सीता दुख तेहवो जीहो, जेहवो ए बोल दहइ छइ निटोल के २८ सुग्रीव प्रमुख सुभट सहू जीहो, आपणइ घरि जात्यई सहु कोइ के। तुं पणि जा घरि आपणजीहो, हिब मुझ थी कांइ सिद्धि न होड के। राम वचन इम साभली जीहो, जंपइ जंबवंत विद्याधर एम के । राम अंदोह दुखु का करो जीहो, विरह विलाप करो तुम्हे केम के ॥ हुवो हुसियार धीरज धरो जीहो, उत्तम सुख दुख एक सभाव के। सूरिज तेज मुंकइ नहीं जीहो, जगतइ आथमइ तेण प्रस्ताव के ॥३शारा० अति सबल संकट पड्यो सहइजीहो, साहसंवत पुरुष संसारि के।। वजूनो घात पृथिवी सहइ जीहो, नवि सहइ तु तू एम विचार के ||३२|| लखमण सकति विद्या हण्यो जीहो, मूर्छित थयो पणी नही मुंयो एह के। को उपचारे करी जीविस्यई, जीहो ए वातनो इहां नहीं संदेह के ॥३३॥ ते भणी उपचार कीजीयइ जीहो, राति माहे तुम्हें मत करो ढीलि के। नहि तउलखमणमरिस्वइ सही जीहो,जउरविकिरण तसु लागिसइ डोलिके. राम आदेस विद्याधरे, जीहो विद्या बलिइकीया सात प्रकार के। सात सेना सवली सजी, जोहो सात सेनानी सवला सिरदार के ॥३॥ नल पहिलइ रह्यो वारणइ, जीहो धनुष चडावी नई खंचि करि तीर के नील वीजइ रह्यो वारणई, जीहो हाथ गदा लेई साहस धीर के ।।३६/अतिवल हाथि त्रिसूल ले, जीहो त्रीजइ बारणइ रह्यो सूरवीर के। कुमुद रह्यो चउथई वारणइं, जीहो पहरि सन्नाह कडि वांधि तूणीर के हाथि भालउ ग्रही नउ रह्यो, जीहो पाँचमई बारणइ परचंडसेन के। सुग्रीव छट्टई वारणइ, जोहो झालि रह्यो हथियार वलेन के ॥३८॥ रा० भामंडल रह्यो सातमई, जीहो बारणइ विरुद वाँची रह्यो सूर के। सुभट रह्या सगली दिसइ, जीहो अभंग भड अतुलबल प्रवल पडूर के।