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( १५३ ) राम सुणी सहोदर तणी जीहो, वध तणी वात द्रोडी आयउ पासके । सगतिमात्यो पृथिवी पड्यो जीहो, देखिनईदुखु लायो घणो तासके।१७/ विरह विलाप करतो थको जीहो, नाखतो आसु नोर प्रवाह के। मूर्छित थई पृथिवी पड्यो जीहो, सवल सहोदर नो दुख दाह के ॥१८॥ सीतल जल सचेतन करयो जीहो, राम विलाप करई वली एम के। हा वछ ए रणभूमिका जीहो, अठि सहोदर सूइजइ केम के ॥१६॥ रा० समुद्र लाघो इहा आवीया जीहो, सवल संग्राम माहे पड्या आज के। तु कां अणवोल्यइ सी रह्यो जोहो ,किम सरिस्सइइम आँपण काज के।। विरह खमुं किम ताहरो, जीहो वोलितु वच्छ जिम धीरज होइ के । राज नइ रिद्धि रमणी किसी जीहो, वाधव सरिसो ससारि न कोइ के अथवा पूरव भव मई कीया जीहो, जाणीयइ छइ कोई पाप अघोर के सीता निमित्त इहाँ आवीया जीहो, पड्यो लखमण हिव केह नुं जोर के रे हीया का तुं फाटइ नही जोहो, वजू समो हुवो केण प्रकार के। जे विना खिण सरतो नही जीहो, तेह बोल्यां थई अतिघणो वार के ॥ पाच सकति मुंकी तुज्झ नइ जीहो, सत्रुदमनि तेतउ टाली तुरन्त के। एक रावण तणी सकति तईजीहो, झालि न राखी वाधव किम मत्तिके ऊठि वाधव धनुष ए हाथि लइ, साधि हुँ तीर लगाइ मा वार के। ए मुझ मारण आवीयो जीहो, सत्रुनइ कहि कुण वारणहार के ।।२।। इणि परि बाधव दुख भत्यो जीहो, राम करइ घणा विरह विलाप के। कहइ सुग्रीव नइ हिव तुम्हे जीहो, आप आपणी ठाम सहु जाय आप के मुझ मनोरथ सहु मनमाहि रह्या जीहो, सुणि विभीपण राजा कहुँ तेह के तई उपगार मुझ नई कियो जीहो, मुझ पछतावो रह्यो एहके ।।२७|