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( १५१ ) रांवण कहई जुगतो किसो, तई कीधो छइ काज । तजि रतनाव वंस नइ, अरि चाकर थयो आज ||१५|| वदइ विभीषण दसवदन, सुणि तइजुगत न कीध । परस्त्री आणी पापिया, कुलन लांछन दीध ।। १६ ।। जुगत बात तउ मई केरी, दियो अन्याई छोडि । न्यायवंत पासई रह्यो, मुझनई केही खोडि ।। १७ ॥ अजी सीम गयो फ्युं नहीं, मानि अम्हारउ वोल। सीता पाछी सूपि तु, भूलि मानिपट निटोल ॥ १८ ॥
सर्वगाथा ॥२०६॥
ढाल पांचमो ॥ खेलानी ॥
इमसुणि रावण कोपियो जीहो, माडियो जुद्ध विभीपण साथि के। बांण वाहइ ते विहंगमा जीहो, तीर भाथा भरी धनुष ले हाथि के ॥शा राम रांवण रण माडियो जीहो, झूझइ छइ राणी रा जाया झूमार के। हाक मारई मुखि हुकलईजीहो, सूर नइ वीर वडा सिरदार के ॥२॥ इन्द्रजित लखमण सु अड्यो जीहो, कुभकरण करई राम सु जुद्धके । सीह अड्यो साम्हो नीलसु जीहो, नल सु अड्यो दुरमद अति क्रुद्धके ॥३॥ सयंभु सुभट अड्यो सुंभु सुं जीहो, इम अनेरी वलि सुभट नी कोडि के। सूर पुरुष चड्या सूरिमा जीहो, कायर कापइ छइ निज वल छोड़ि के ॥४॥ लखमणइ इन्द्रजित वाधियो जीहो, राम बाध्यो कुंभकर्ण सगर्व के । इम मेघवाहन प्रमुख नइ जीहो, वाधीया नागपासे करी सर्व के ॥५॥