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गयासंग्राम मांहे वली, लखमण राम उल्हास । गरुड घजा तसुदेयतां, नागपामि गया नासि ॥४॥ भामंडल सुग्रीव सहु, मुकाणा ततकाल । आइ मिल्या श्रीराम नइ, गयो जीव जंजाल ।।५।। पूछइ करि जोडी प्रभो, सकति किहा थी एह । राम कहई तुम्हे साभलो, जिम भाजईसन्देह ।।६।। जलभूषण देसभूपणा, मुनिवर परवत शृंगि। उपसर्ग सहता ऊपनो, केवलज्ञान सुरंग ।। ७ ।। अम्हनइ वर दीधो हुँतो, गुरुडाधिप तिण ठाम । आज अम्हे ते मांगियो, सीधा वंछित काम ।। ८॥ विद्याधर इम साभली, रंज्या साधु गुणेण । परससा करइ पुण्यनी, पुण्य करो सहु तेण ||६|| करवा लागा जुद्ध वलि, कटक देउं बहु बार। सुग्रीव सुभटे जीपिया, राक्षस ना झूमार ॥ १० ॥ रावण उठ्यो रीस भरि, रथ बइसी रण सूर । सुभट सहू वानर तणा, भांजि कीया चकचूर ।।११।। वानर कटक धकेलियो, देखि विभीसणराय। सन्नद्ध वद्ध हुई करि, रावण साम्हउ धाय ।। १२ ।। रावण कहइ जा माहरी, दृष्टि थकी तू दूरि। वाधव वध जुगतो नहीं, नावे मुज्म हजूरि ॥ १३ ॥ वदइ विभीषण एम पणि, जुगति नही' छइ काई। रिपु नई बीहतो पूठि धइ, कायर ते कहवाइ ॥ १४ ॥ १-न दोसइ