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( १४६ ) रांम हुकम अंगद नृप ऊठ्यो, कुंभकरण दल मोडई। हाक मारि हनुमन्त वीर तितरई, नागपासि निजत्रोडइं॥३शाहो० हनुमन्त वीर अनइ अंगद नृप, वेऊ विमाने वश्ठा । लखमण कुमर विरोही विद्याधर, भर रण माहे पइठा ॥३६॥ हो० लखमण सहु संतोऽया वचने, पास बंधण जे पडिया। इन्द्रजित कुमर विभीषण तेहवइं, वे माहोमांहि अडिया ॥३७॥हो. इन्द्रजित कुमर चिंतवा लागो, ए मुझ वाप नी ठामई। जुद्ध करी जीता पणि नहि जस, ओसरिवो इण कांमई ॥३८॥ हो। ओसरतो भामंडल सुग्रीव नइ वांधी नइ नीसरीयो। देखी रांमभणी कहइ लखमण, आरति चिंता भरियो ।।३।। हो० इसा सुभटां विण किम जीपायइ, रावण विद्या पूरउ । रांम हुकम लखमण सुर समस्यो, आयो वोलतउ सूरो॥४०॥हो० चउथी ढाल थई ए पूरी, पिणि सग्राम अधूरो । समयसुंदर कहइ सुर करई सानिधि, पुण्य हुयइ जउ पूरो ॥४शाहो.
सर्वगाथा ॥२६॥
दूहा १८ रामचन्द नइ देवता, दोधी विद्या सीह । गुरुड तणी लखमण भणी, तेहथी थया अवीह ।। १ ।। प्रहरण सन्नाहे भस्या, रथ दीधा वलि दोय । नामई वजूवदन गदा, लखमण नै धइ सोय ॥२॥ हल मूसल दीया राम नइ , रथ जोत्राया सीह । विहुं रथ वइठा वे जणा, हनुमन्त साथि ग्रहीह ॥३॥