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( १४८ ) दशनावरणी विद्या थंभा, कुंभकरणइ छलि लीधा। हाथ थकी हथियार पड्यो सहु, निद्रा घूर्मित कीधा ॥२४॥ हो० ते ऊपरि त्रूटीन धायो, सुग्रीव वानर राजा। मुंकी निज पडिवोहिणी विद्या, जागरूक थया साजा ॥२५॥ हो० सुभटवली सावधान थई नइ, जुद्ध करण रण सूरा । कुंभकरणनइ सुभटे भागो, वलि वागा रण तूरा ||२६।। हो इन्द्रजित विढता आड आयो, कहई वीनति अवधारो। तुम्ह आगई संग्राम करिसि हुं, तुम्हे वासोवपुकारो ।२७। हो० इम जंपंत गज उपरि चडि, रिपसेन सर वीधी। भामंडल सुं सुग्रीव धायो, सवल झडाझडि लीधी ॥२८॥ हो० तुरगी तुरगी सुं तरुयारे, रथी रथी सुं प्रहारे। गजी गजी सु जंग मंडाणो, पालिहार पालिहारे ॥२६|हो. कहइ इन्द्रजित तुझ मस्तके छेदिसि, सुणि तुं सुग्रीवराया। कां तुं लंकापति छोडीनई, सेवइ भूधर पाया ॥३०॥ हो० कंकपत्र सर मुँकइ इन्द्रजित, सुग्रीव आवता छेदई। मेघवाहन भामंडल पणि वलि, एक एकनई भेदई ॥३१॥ हो० वतनाम विरोही रुध्यो, विद्या वलि रण माहे। सुग्रीवनई वांव्यो नागपासई, विद्या हथियार वाहे ॥३२॥ हो० घनवाहन भामंडल बांध्यो, देखि कटक डमडोल्यो। लपमण राम समीपई आवी, एम विभीषण बोल्यो ॥३३॥ हो० सुभट अम्हारा रावण बेटे, नागपास करि बांध्या 1 कुम्भकरण हनुमन्त नइ बांध्यो, बलराक्ष ना वाध्या ।। ३४ ॥ हो?