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नहि अंजणासुदर अगज, आचारे ओलखियइ। वलि दस दिवसे दोहिलो सहियई, पणि अपणी माम रखियइ ॥६२॥ हनुमंत कहइ हसीनइ तुझ माहि, नहि उत्तमनो लक्षण । असमंजस बोलइ का मुहडइ , का करई अपवित्र भक्षण ।।६३॥ सी० उत्तम हूइ परनारि सहोदर, अधम हरइ परनारी। नहि तू रतनाव नो नंदन, का हुयउ कुल क्षयकारी ॥६४॥ सी० इण वचने रांदण अति कोप्यो, हुकम करई सुभटान। देखो दुष्ट वचन वोलतो, पालण मारि कटानइं ॥६५॥ सी० सांकल वाँध सिहर मई सगलइ, घर-घर गली भमांडउ । लंका लोक पासि हीलावउ, दुख वानरनइ दिखाडउ ।।६।। सी० रावणरीस वचन सुणी वानर, वल करि बंधन छोडई। जिम मुनिवर सुभ ध्यान धरी नई, तुरत करम वध त्रोडइ ।।६७|| सी० ऊडि गयो उंचो आकासई, सीता दूत जिम समली । भांज्यो भुवन सहस जिहा थाभा, चरण लता दे सवली ॥६॥सी० पडतइ भुवन धरा पिण कॉपी, सेषनाग सलसलिया। लंका लोक सबल खलभलिया, उदधि नीर ऊछलिया ।।६।। सी० इम हनुमंत महातम अपणो, देखाडी लंकाम। किंकिंधनगरी नई चाल्यो, राम वधावणि कामई॥७॥ सी० सीता हनुमंत जातउ जाणी, असीस द्यइ जस लेजे। द्यइ पुष्पाजलि साम्हो हुई नई, कुशल खेम पहुचेजे ॥७१।। सी० खिण एक माहि गयो ऊडीनई, किंकिंध नगरीमइ । सुग्रीव पासि गयो सुखसेती, भलो काम कीयो भीमई ॥७२॥ सी०