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( १३६ ) सुग्रीव उठि दीयो बहु आदर, राम पासि ले आयो। ऊठ्यो राम देखि आवंतो, परमानंद मनि पायो ||७३|| सी० करि प्रणाम हनुमंत चूडामणि, रामचंद नई दीधी। सीता मिलण समो सुख पायो, हीयडई आगलि लोधो ।।७४|| सी० वीजी ढाल भणी अति मोटी, हनुमंत दूत गमन की । समयसुंदर कहइ खंड छठा नी, रसिक माणस सुखजनकी ।।७।। सी०
सर्वगाथा ।। १५८ ॥
दहा ११ कहइ सीता नई कुशल छई, हनुमंत वोलइ एम । तिहां जाता नइ आवतां, वात थई छइ जेम ||१|| संदेसो सीता कह्यो, थोडा दिवस मंझारि। जो नाया तउ जीवती, नहि देखो निजनारि ॥२॥ सीता सहिनाणी सुणो, सुणी तास संदेस । आपो निदइ रामजी, आणइ मनि संदेश ।।३।। धिग धिग जीवित तेहनो, धिग धिग तसु अवतार । जसु महिला रिपु मंदिरे, निवसनित निरधार ||४|| रामनइ आमणदूमणो, देखी लखमण ताम । कहइ सोचा' म करो तुम्हें, सीतल परना काम ||५|| लखमण तेडाया सुभट, सुग्रीवादिक झत्ति । ते कहई भामंडल अजी, नायो करो निरत्ति ।।६।। ढील नहि छह अम्ह तण, चालो लंका जेथि । पिण किम तरिस्या भुज करी, आडो समुद्र छईएथि ||७|| १-चिन्ता