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( १३४ ) ले आदेस पितानो इंद्रजित, गज चडि हनुमंत सनमुख । पहरि सन्नाह शस्त्र ले चाल्यो, साल्यो सबलो अरि दुख ॥५१।। सो० मेघनाद पणि साथई चाल्यो, गज चडि सेना सेती। अरिदल मिल्या मांहोमहि वेडं, विच थोड़ी सी छेती ।।५२|| सी० युद्ध करता हनुमत आपणी, नासती सेना निरखी। आप ऊठि अतुलीवल सगली, राक्षस सेना धरखी ।।५।। सी० निजसेना भागी देखीनई, इन्द्रजित चड्यो अमरसई। तीर सडासडि नाखई ततपर, जिम नव जलधर वरसइ ।।५४|| सी० हनुमंत अद्धचंद्र वाण सु, आवता छेद्या ते सर । वलि मुकई रावणसुत मोगर, तेम सिला लि वानर ।।५।। सी० राक्षस सुत मुकइ वलि सबलो, सगति प्रहार धरि मच्छर। लघलाघवी कला करि टाल्यो, हनुमंत कपि विद्याधर ॥५६।। सी० इन्द्रकुमरि नागपासे करि, हनुमंत देही वाधी। रांवण पासि आणि ऊभो कीयो, कहइ ए तुम्ह अपराधी ।।५७) बात कहइ सगली हनुमतनी, रावण आगलि राक्षस । सीता दूत ए सुग्रीव मुंक्यो, गढ़ भागो जिण धसमस ॥५८। सी० इण मास्यो वलि वजमुख राजा, लंकासुंदरि लीधी। बानर रूप पदमवन भागर, लकामइ हेल कीधी ।।५६।। सी० इम अपराध सुणीनई रावण, रूठउ होठ दंत ग्रहि। साकलि सुं बांधो मारई, कहइ अपणउ कीधउ एह लहि ॥६०॥ सी० रे पापिष्ट दुष्ट निरलज तुं, अधम सिरोमणि वानर । भूचर नउ तु दूत थयो, तो नहि पवनंजय कुयर ।।६१।। सी०