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( ११८ ) रामइ जीवतो झाल्यो, यम रांणानइ ले आल्यो। साहसगति मुयो देख्यो, सुग्रीवनो हियो हरख्यो ।। २८॥ सुग्रीव लखमण राम, आव्या आपणइ गाम | राख्या उद्यान माहे, घरि गयो आप उछाहे ।। २६ ।। तारा राणी नइ मिलियो, विरहतणो दुख टलियो। अश्व रतन बहु भेटि, दीधा रांमनइ नेटि ।। ३० ॥ लुबधो रहइ तारा सेती, कहुँ तेहनी बात केती। पणि प्रतिज्ञा वीसारी, चूको सुग्रीव भारी ।। ३१ ॥ सुभट तिहा सहु मिलिया, विरहिय प्रमुख जे वलिया। तेरह सुग्रीव कन्या, चंद्रप्रभादिक धन्या ॥ ३२ ।। रांम आगलि आवी तेह, इम वोनवइ सुसनेह । अम्हारो भरतार, दि सामी करतार ।। ३३ ।। राम उपरि दृष्टि पोती, पासि ऊभी रही जोती। पिण श्रीराम न जोयड, सोता विरह वियोगइ ॥ ३४ ॥ राम विनोद निमित्त, नाटक करई एक चित्त । तउ पिणि दृष्टि देवई, केहनइ न बोलावई ॥३५ ।। सीतानो एक ध्यान, ते विन सहु सुनो रान । लखमणनइ कहइ राम, सीधो सुग्रीव काम ।। ३६ ॥ पणि सुग्रीव निचिंत, किम बइठो ग्रही एकंत । परवेदन कुण जाणइ, काम कीधो कवण पिछाणइ ।। ३७ ।। काम सख्या वैद्य वइरी, थायइ इम दीसई छइरी । तां लगि सहु करइ सेव, ता आराधईज्युं देव ।। ३८॥