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( ११६ ) तां लगि प्रगटइ सनेह, तां पगि झटकइ खेह । जां लगि पोतानो काज, सीमा नइ सहु साज ॥ ३६ ।। काम सीधा पछइ सोई. वात चीतारई नहि कोई। एहवा रांम वचन्न, साभलि लखमण कन्न ॥४०॥ गयो सुग्रीवनई पासइ , एहवो आकरो भासई . रे तुं कृतघन खेचर, तू तो अधम नरेसर ॥४१॥ वीसास्यो आगीकार, नहि उत्तमनइ आचार। तुं आपणो बोल्यो पालि, उठि तूं आलस टालि ॥ ४२ ॥ नहि तर सुग्रीव (साहसगति ) जेम, तुझनई करिसि हुँ तेम । इण परि निभ्रंछयो बहुपरि, सुग्रीव थरहस्यो भय करि ॥४३॥ लखमण नइ कहइप्रणमी, सामी अपराध मुझ खमी। हुँ लाज्यो हिव अति घणु, ते परमारथ हुँ भणुं ॥४४॥ मइ मतिहीण न जाण्यो, त्रूटई अति घणो ताण्यो । हुँ रहुं महल आवासि, राम रहइ बनवासि ॥ ४५ ॥ तारा मुझ प्रिया सुखिणी, सीता विरहिणी दुखिणी। मुझ वयरी मास्या राम, रामनउ वयरी समाम ॥ ४६॥ तुम्ह कियो मुम उपगार, मुझथी न सस्यो लगार। पहिलो करइ उपगार, अमूलिक तेह संसार ॥४७॥ उपगार कियां उपगार, क्रय विक्रय व्यवहार। उपगार कीधा जे कोई, पाछो न करई ते होइ ॥४८॥ सींग विना सहि ढोर, भूमिका भार कठोर । इम आपणी निंदा करतो, उपगार चित्तमई धरतो ॥४॥