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( ७६ ) पाछइ आवो इम कहइरे, राजा आगलि वात । दूत पाछउ मुनइ वालियोरे, कहइ वीजउ न सुहात ॥ ५। पू० ।। राणी अति हरषित थईरे, वांभण सु बहु प्रेम। काम भोग सुख भोगवइरे, विप्र कहइ वलि एम ।। ६ । पू०॥ उदित १ मुदित २ सुत ताहरारे, एकरिस्य अंतराय । मारि परा तेहनइ रे, जिम सुख भोगन्या जाय ॥ ७ ।पू०॥ वाभणी भेद जणावीयोरे, उदितकुमर नइ तेह।। तुझ माता मुम नाह सुं रे, कुकरम करई निसंदेह ॥ ८ । पू० ॥ खडग सु माथो बाढियो रे, उदितइ मास्यो विप्र । वित्र मरीनई अपनो रे, म्लेच्छपल्ली नइ खिप्र॥ । पू० ॥ उदित मुदित बिहुँ बाधवे रे, आव्यो मनि संवेग। धिग २ ए संसारनइ रे, अनरथ पाप उदेग ।। १० । पू० ।। विहुँ बाँधब दीक्षा ग्रही रे, मतिवर्द्धन मुनि पास। उग्र तपइ तप आकरा रे, मोडइ भवनो पास ॥ ११ । पू०॥ समेतसिखर जात्रा भणी रे, चाल्या मुनिवर वेइ । म्लेच्छ पालि माहे गया रे, म्लेच्छे द्वेष करेइ ।। १२ । पू० ।। साधुनइ मारण उठीयो रे, क्रोधी काढि खडग्ग । सागारी अणसण करी रे, मुनि रह्या मेरु अडिग्ग ॥ १३ । पू० ॥ सत्रु मित्र सरिपा गिण रे, भावना भावइ अनित्य । देही पंजरइ दुखनउ रे, मुगति तणा सुख सत्य ॥ १४ । पू०॥ . पल्लीपति नइ अपनी रे, करुणा परम सनेह । मारतउ राख्यो म्लेछ नइ रे, उत्तम करणी एह ॥ १५। पु।।