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( ७० ) महिधर राय सुखी थयो, मुग मांहि ढल्यो वीय । विछावणो लह्यो उघतां, धानपछउ त्रेसीय ॥४॥ राम समीपइ अवीयो, राजा करी प्रणाम । स्वागत पूछइ रामनई, भलइ पधात्या स्वाम ।।५।। पइसारो करि आणियो, आपणइ भुवन मझारि । रलीय रंग वद्धामणा, आदर मान अपार ॥ ६॥ रामचंद नइ आपीया, ऊँचा महल आवास । बनमाला महिला मिली, लखमण लील विलास ।।७।।
सर्वगाथा ||७२॥
ढाल ४ (४) राग गउडी। हिव श्रीचद सकल वन जोतुं ए देसी। इण अवसरि आयो इक दूत, नंदावर्त नगरी थी नूत । अतिवीरिज राजा मुंकियो, महिधर पासि आवी कूकियो ।॥ १॥ अम्ह सामी बोलाय तुम्हें, तुम्हनइ तेडण आव्या अम्हे । भरत संघाति थयउ विरोध, वीजा पणि वोलाया जोध ॥२॥ बहु विद्याधर जस सादूल, प्रमुख तेडाया जे अनुकूल । हिव तुम्हें आवउ उतावला, भरत मारिनई जोडा तला ॥३॥ सीहोदर नइ लीधर साथि, हय गय रथ पणि मेली आथि । भरत अयोध्या थी नीसरी, साम्हउ आव्यउ साहस करी॥४॥ महिधर सुणि अणवोल्यो रह्यउ, पणि लखमण थी नगयउ सह्यउ । कहे दूत किमि थयो विरोध, भरत ऊपरि अतिवीरिज क्रोध ॥शा