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( ७१ ) दूत कहइ तु सुणि महाभाग, अम्ह सामी दीठउ ए लाग । लखमण राम गया वनवास, भरतनई पाडु आपण पासि || दूत मुकिनइ भरतनइ काउ, मानि आणि किम बइठउ रह्यउ । आण न मानइ तउ था सज्ज, लहुं आपल देखि सकज्ज || दूत वचन राजा कोपियो, भरत कहइ क्रोधातुर थयो।' अतिवीरिज नइ कहतां एम, सत खंड जीभ थई नही केम ॥८॥ केसरि सीहन सेवइ स्याल, रविनइं किसी ताराओसिपाल । दुरभाषित नइ देइसि दंड, मारि करिसी बयरी सतखंड ॥४॥ दूत कहइ तुं गेहे सुर, ते राजानो सबल पड़ । इम कठोर कहतइ ते दूत, झालि गलइ नाख्यउ रजपूत ॥ १० ॥ पछोकडि मारो काढीयो, तिण जाई प्रभु कोपइ चाढीयो। भरत गिणइ नइ तुझ नईगांन, फोकट केहल करइ गुमान ॥१२॥ दूत वचन सुणि कोपउ चड्यो, मेलि कटकनइ साम्यउ अड्यो। थयो विरोध थे कारण एह, तिण महिधर नइ तेडइ तेह ।। १२ ।। कहइ महिधर आवा छा अम्हे, दूत आगइ थी पहुची तुम्हें । राम कहइ सुणि महिधर राज, एतउ आज अम्हारो काज ।।१३।। भरत अम्हारउ भाई तेह, साहिजनी बेला छइ एह। द्यउ तुम्हेंपुत्र अम्हारइ साथि, अतिवीरिजनइं दिखाडाहाथ ।।१४।। महिधर सुत दीधा आपणा, सीता सहित राम लखमणा। रथ बइसी नइ साथइ थया, छाना सा तिन नगरी गया ॥ १५॥ नंद्यावर्त नगरों नइ पासि, डेरा ताण्या सखर फरास । सिंहासण वइसास्या राम, सीता लखमण उत्तम ठाम ॥ १६ ॥