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( ६६ ) बाप वीजा कुमरा भणी, देतउ हुँतो दिन राति । पणि मंइ को वाछ्यो नही, लखमणनी मन वात ॥१३॥ सु० अन्य दिवस वापइ सुण्यो, दीक्षा दसरथ लीध । भरतनइ राजा थापीयो, राम देशवटउ दीध ॥१४॥ सु०॥ सीता लखमण साथि ले, वनमईभमइंनिसदीस। वाप विषाद पाम्यो घणो, स्युं कीधो जगदीस ॥१५॥ सु०॥ इन्द्रपुरी नगरी धणी, सुन्दर रूप कुमार। चाप दीधी मुम तेहनइ, मइ मनि कीधउ विचार ।।१६। सु०॥ कइ लखमण परशुं सही, नही तरि मरणनी बात । दृष्टि वंची परवारनी, हुं नीसरी गई राति ॥१७ सु०॥ वड वृक्ष हेठि उभी रही, पासी माडी जाम । किणही पुण्य उदय करी, लखमण आव्यो ताम ।।१८। सु०॥ वनमाला वात आपणी, सीतानइ कही तेह । ढाल त्रीजी चउथा खंडनी, समयसुन्दर कहइ एह ।।१६। सु०
सर्वगाथा । ६५ ।
दूहा ७ जेहवइ वनमाला कहइ, सीता आगलि वात । तेहवइ पोकारी सखी, बनमाला न देखात ॥१॥ सुभट चिहुँ दिसि दोडिया, जोबा लागा तास । जोता जोता आवीया, रामचंदनइ पास ॥२॥ वनमाला दीठी तिहा, राजानइ काउ आइ। लखमण राम आया इहा, वनमाला मिली जाइ ॥ ३ ॥