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इम परसंसी तेहनइ, जीमाड्यउरे भोजन भरपूर । स्त्री भरतार पहिराविया, धन देई रे घणउ कीधा सनूर ॥४ स०॥ संप्रेड्या घर आपणई, कर साहमी रे बछल सुविसाल । कपिलई संयम आदस्यो, केतलइ इकरे वलि जातइ कालि ।।५सoll वरसालो पूरो रही, वलि चाल्योरे राम अटवी मझारि । यक्ष करई पहिरावणी, राम दीधउरे स्वयंप्रभहार ।।६ स०॥ लखमणनई कुडल दीया, सीतानई रे चूणामणि सार । वीणा पणि दीधी वलो, वलिखाम्योरे अविनय अधिकार ७ स०|| राम चल्यां पछि अपहरी, ते नगरी रे जाणे इन्द्रजाल । चउथा खंड तणी भणी, ए बीजेरे समयसुन्दर ढाल ।८स०।
सर्वगाथा ॥४४॥
दूहा २
राम तिहाथी चालिया, विजयपुरी गया पासि । वड पासइ विश्रामिया, राति तणी रहवासि ॥१॥ बड हेठइ लखमण सुण्यो, विरहणि नारि विलाप । लखमण आधेरउ गयो, संभलिवानी टाप ।।२।।
सर्वगाथा ॥४६|| ढाल त्रीजी३ (३) देखो माई आसा मेरइ मनकी सफल फलीरे।
आनन्द अगि न माय, एगीतनी ढाल || सुण वनदेवी मोरी वीनती, साम्हो जोइ रे। हुँ निरभागिणि नारि, इण भवि नाह न पामियर लखमण कुमार रे, परभव होइज्यो सोइ ॥१॥ सु० आ० ॥