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निज करतूत संभारतो, पाछो नाठो जाम । निज नारी की गयउ, तेड्यउ लखमण ताम ॥५॥ महापुरुषानइ देखिनई, कीघउ चरण प्रणाम । पूछ्यो राम किहाँथकी, आव्यउ स्युं तुम नाम || ते कहई हुँ छु पापियउ, कपिल छइ माहरु नाम । घरथी बाहर काढिया, जिण तुम्हनइ गई माम ||७|| करकस वचन मइ बोलिया, आगण वइठा देखि । आयो किम ऊठाडियइं, वलि सापुरुष विशेखि ८॥ हुँ अपराधी हुँ पापियो, तुम्हे खमज्यो अपराध । अवगुण कीधां गुण करई, अनम नाणई षाध ॥६।
सर्वगाथा ३६॥ ढाल २ बोजी
राग वयराडि ११) जाजारे वाँधव तु वडउ ए गुजराती गीतनी ढाल ।
अथवा वीसारी मुन्हें वालहइ तथा हरियानी राममीठे वचने करी, संतोष्यो रे देई आदर मान । तुझ दूषण विप्र को नही, पांतरावइ रे नरनई अगन्यांन ।।१।। सगपण मोटर साहमी तणउ, कांई कीजई रे तेहनइ उपगार । भोजन दीजइ अति भला, वलि दीजइ रे द्रव्य अनेक प्रकार ॥२ स० ।। धन-धन तुंजिनध्रम लियो, वलि मुफ्यो रे अगन्यान मिथ्यात । कपिल जनम त सफल 3 कीयो, अम्हारो रे साहमी तुं कहात ।।३स०