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लखमण राम सीता रह्या, तिहां बरसाला सीम। रामपुरी परसिद्ध थई, नगरी निःजोखीम ॥१४|| अटवीमईभमतउ थकउ, वीजइ दिवस अदूर। कपिल विप्र तिहों आवीयो, देख नगरी नूर ॥१५॥
ढाल १: राग-प्रासारी वेसर सोना की घरि देवे चतुर सोनार । वे० । वेसर पहिरी सोना की
रझे नदकुमार । वे० । ए गीत नी ढाल । नगरी तिहां देखी नवी, ऊपनो कपिल संदेह । पूछइ नगरी नारिनई, कुणनगरी कहउ एह ॥१॥ नगरी रामकी, सुणि वांभण सुविचार न०। नगरी रूडी रामकी, सरगपुरी अवतार ।।२।। न०|| नगरी करि दीधी नवी, देवै रामनइ एह । लखमण राम सुखई रहइ, तई साभली नहीं तेह ॥३ न०॥ सूरवीर अति साहसी, वड दाता वड चित्त । दीन हीननई ऊधरई, धइ मन वंछित वित्त १४ न०॥ वलि विशेष साहमी भणी, द्यइ बहु आदर मान । भोजन भगति करई घणी, ऊपरि फोफल पान ||५ न०। कहई वाभण लोभी थकउ, किणही परि लहुं राम । सुणि बांभण कहई यक्षिणी, इम सरिसई तुझ काम ।।६ न० ॥ इणनगरी पइसइ नहीं, सांझनी वेला कोइ । पूपिणि रब दिसि बारणइ, जिणमदिर छइ जोइ ॥७ ना