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( ६३ ) वड दीठउ उक तिहां वडउ, बहुल पत्र रह्यउ छाइ ।। वड आश्रय बइठा जई, त्रिण्हे एकठा थाइ ॥४॥ यक्ष वसई इक तिण वडइ, पणि तसु तेज पडूर । अणसहतठ उठी गयो, वडायक्ष हजूर ।।५।। ते कहइ कुण वरजी सकइ, एतउ पुरुष प्रधान । अवधिज्ञान मइ ओलख्या, दीजई आदर मान ॥६॥ बडउ यक्ष आयउ वही, पलिंग विछायो पास । सखर तलाई पाथरी, उसीसा विहुं पास ||७|| सुखसेती सूता त्रिण्हें, प्रह ऊगमतइ सूर। सहुको भबकी जागीया, वागा मंगल तूर ॥८॥ रामचंदनइ पुण्यइ करि, तिण यक्षइ ततकाल। । देवनीमी नगरी नवी, नीपाई सुविसाल || गढमढ मन्दिर मालीया, ऊँचा बहुत' आवास । राजभुवन रलियामणा, लखमी लील विलास ॥१०॥ कोटीधज विवहारिया, वसई लखेसरी साह । गीतगान गहगट घणा, नरनारी उछाह ॥११॥ सीता लखमण रामनई, देखी थयो अचंभ। अटवी मांहि अहो २, प्रगटी नगरी सयंभ ॥१२॥ नगरी कीधी मइंनवी, यक्ष कहई सुसनेह । मसकति एह छइ माहरी, पुण्य तुम्हारा एह ॥१३।।
१ महन