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कक्करि पाणी करि धj॥ रा०॥ धण नइ न मेल्हइ पास ।। कुवचन कानि न साभलारा०॥ वारू पुल्लिदह वास |१०|| प्रि। सीता वचन सुणीकरि ॥राoll कीधउ लखमण क्रोध ॥ वांभण टांग झाली करी ॥रा०ा उंचउ भमाड्यउ जोध ॥११।। प्रि०|| राम कहइ लखमण मा मा रा०|| मुंकी दे तू एह ।। ए बात तुझ जुगती नही ॥रा०ा उत्तम द्यइ नहि छेह ॥१२॥ ॥प्रि०|| बालक वृद्ध नइ रोगियउरा० साध ४ वांभण ५ नइ गाइ॥६॥ अबला ७ एहन मारिवा ॥रा०|| माख्या महापाप थाइ ॥१३॥ ॥प्रि०॥ इम कहि राम मुंकावियउ ॥रा०॥ ते वाभण ततकाल । ते घर छोडिनइ नीसत्या रा०॥ राम कहीजइ कृपाल ||१४|| ॥प्रिया त्रीजा खडनी सातमी ॥ रा०॥ ढाल पूरी थइ तेम । तीजउ खंड पूरो थयउ ॥रामा समयसुन्दर कइइ एम ॥१२॥ सर्वगाथा १६८ इतिश्रीसीतारामप्रवन्धे वनवासे परोपकार वर्णनो
नामस्तृतीय खण्ड सम्पूर्णः।
दहा १५ दानशील तप तिन्ह भला, पिणि विन भाव न सिद्धि । तिण करणे काउ जोईजइ, चउथउ खंड प्रसिद्ध ॥शा लखमण सीताराम सहु, गया आघेरा जेथि, गाजवीज करि वरसिवा, लागउ जलधर तेथि ।।२।। सिगलई अंधारउ थयउ, मुसलधार करि मेह । वूठउ नइ वाहला चूहा,धजण लागी देह ॥३॥