________________
ढाल सातवों ढाल-नाहलिया म जाए गोरीरइ वणहटइ
राग-मल्हार सीता कहा तुम्हे सांभलउ । राम जी ।।एक करूँ अरदास।। इहां थी आपानउ भलउ राना अटवीनउ वनवास ॥११॥ प्रीयुडा न रहियई मंदिर पारकई, इहां नहि को उलखाण । माहीनर नजाणई इहां कोइ आपणो । मूरख लोकई अजाण ॥२ प्रिया आ० तेहवइ ते घर नउ धणी ।।राll आयउ कपिल पिण विप्र ॥ फलफूल इंधण हाथमई॥ देखि रिसाणउ खिप्र ॥३॥॥प्रिय।। क्रोध करी नई धमधम्यउ॥रा०ा वाभणी नई घइ गालि ।। रे रे घरमई घालिया ॥रा०॥ एकुण घर सम्भालि ||४|| प्रिय।। वचन कठोर कह्या घणा |Roll मारण उठ्यउ डील ।। घर माहि का पइसिवा दीया ॥रागा घूलि धूसरिया भील |||||प्रिया रे रे इहा थी नीसरउ ॥रा०॥ घर कीधउ अपवित्र । वांभणी लागी वारिवा ।।रा० तिम वली लोक विचित्र ॥६॥॥प्रिय।। बाभण न रहइ बोलतउ ॥रा०ा मुंहडा छूटी गालि ॥ सीता कहइ न सकुं सही ॥राा छोडिखोलड वेढिटालि ||७||प्रि०॥ वसती थी अटवी भली ॥राoll जिहां दुरवचन न होइ ।। इच्छाई रहियइं आपणी ॥रा० फलफूल भोजन सोइ ॥८॥॥प्रि०॥ धिग धिग ए पाणी पियउ |रा०ll भलउ निझरण न नीर । दुरजण माणस संग थी॥रा०ा भलउ म्रिगला नउं तीर ॥प्रि०॥