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( ५७ ) तुम भाई तेडु इहां, मानी लखमण बात । माणसमुंकी रामनइ, तेडायउ नृपजात ||७|| राजकुंयर आदर घणई, प्रणमई रामना पाय । एकातइ करई वनती, भोजन भगति कराय ||८||
सर्वगाथा ११६ ढाल पांचवों
राग मल्हार मेरा साहिब हो श्री शीतलनाथ कि वीनती सुणो ए० ॥ राजेसर हो सुण वीनती एक कि, मनवाछित पूरि माहरा। भाग जोगई हो मुझनई मिल्यउ आजकि, चरणन छोडूं ताहरा। १ रा० इणनगरी हो वालिखिल्ल नरिंद कि, पटराणी पृथिवी धणी। तिण वाध्यउ हो म्लेच्छाधिप रायकि, रणि विढतांवयरी भणी शराण प्रभवंती हो राणीनई जाणिकि, सीहोदर राजा कह्यउ । पुत्र होस्यइ हो जे एहनइ तासकि, राज देईस निश्चउ ग्राउ ॥३ रा०॥ हुँ पुत्री हो हुइ करम संयोगि कि, राजा पुत्र जणावियउ । सहु साजण हो संतोषी नामकि, कल्याण माली आपीयउ॥४ रा०॥ मझ माता हो मंत्री विण भेदकि, केहनइं ते न जणावीयउ । पहिरावी हो मुझ पुरुष नउ वेसकि, मुम नइ राजा थापीयउ ।।५ रा०॥ ए तुम्ह नइ हो कही गुह्यनी वातकि, स्त्रीनउ रूप प्रगट कीयउ । हुँ आवी हो जोवन भरपूरकि, तुम्ह देखी हरख्यउ हीयउ॥ ६ रा०॥