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मुझनइ तुम्हे हो करु अंगीकारकि, प्रारथना सफली करउ । भाग जोगइहो मिल्या पुरुष प्रधानकि । हिव मुझ नइ तुम्हे आदरउ ।। ७ रा०॥ लखमण कहइ हो धरि पुरुषनउ वेसकि, केइक दिन राज पालि तुं। छोडावां हो अम्हे तोरो तातकि, ता सीम चिंता टालि तुं ।। ८ रा०॥ समझावी हो इम चाल्या तेहकि, विध्याटवि पहुता सहू। सीता कहइ हो सुणउ किणहीक साथकि, वेढिहुस्यइ तुम्हनई बहू हरा० तुम्हारउ हो हुस्यइ जयकारकि, किम जाण्यउं तई ते कहई । सीता कहइ हो कडुयइ तरुकागकि, बोल्यउ इण वामई पहई ॥१०रा० खीररूंखइ हो वोल्यउ एक कागकि, विजय जणावई तुम्हनई। वायस रुत हो आगम अनुसारकि, जाणपणु छई अम्हनई ॥११ राना खंड तीजउ हो तसु पाचमी ढालकि, राम सीता लखमण भमई) समयसुन्दर हो कहइ करइ उपगार कि । नाम लीजइ तिण प्रहसमई ॥१२॥रागा
[सर्वगाथा १३१]
दूहा ७ लखमण राम आधा गया, विंध्याटवी माहि ।। आगई दीठउ अति घणउ, म्लेच्छ कटक अत्थाह ।।१।। तीर सडासड़ नाखता, त्रूट पड्या ततकाल । पण लखमण तिम त्रासव्या, जिम हरि नादि शृगाल ॥२॥ तिण म्लेच्छाधिपनई काउ, ते चड़ी आव्यउ वेगि। मारिन कीधर अधमूयउ, लखमण मारी तेग ॥३॥