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॥चाल॥ जां आवां तां सीम अंगीकरि, पहुता वि राजा निज-निज पुरि। साहमीवछल रामइ कीयउ इम, कहइ गौतम श्रेणिक सुणि बढ़धर्म |१६| राम सीता लखमणसहू तिहाँ थी चल्या उछांह । कूपचंड उद्यानमई, पहुता बइठा छाह ।। वश्ठा छोह सहुको जेहवइ, त्रीजाखंडनी चव्थीढाल तेइवई। पूरीथई साहमी नुं वच्छल, समयसुंदर कहई करि ध्रम निश्चल ।।१७॥
[सर्वगाथा १११]
दहा ८ सीता नई लागी वणी, भूख-तृषा समकालि। लखमण जल जोवा भणी, गयउ सरोवर पालि ॥शा तिहाँ पहिलउ आयउ हुँतउ, राजकुंयर सहु साजि । लखमण देखी मंकीयउ, चाकर तेडण काजि ||२|| लखमण नइ ते इम कहई, अम्ह सामी सुविचार । तुम्हनइ तेडइ ते भणी, तिहाँ आवउ इकवार ||३|| लखमण चालि तिहाँ गयउ, तिण दीधउ बहुमान । निज आवास तेडी गयउ, करि आग्रह असमान ॥४|| सिंहासन वइसारनइ, पूछ विनय वचन्न । तुंकुण किहीं थी आवीयउ, दोखई पुरुष रतन्न ।।५।। मुझ वांधव लखमण कहई, वाहिर बइठ जेथि । 'तेहिनई पासि गयां पछी, वात कहिसि हुँ तेथि ॥६॥