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( ५२ ) त्रीजी ढालइ खंड त्रीजानी रे। समयसुंदर कहइ ध्रम दृढ़तानी रे ॥२४ सु० ।।
[सर्वगाथा ६४] ॥ ढाल चउथी चंदायणनी ॥ पणि दहइ २ चाल ॥
॥राग केदार गउडी। राम भणइ लखमण भणी, चालउ दसपुर गाम । साहमी नई सानिधि करउ, घरम तणुं ए काम ।।
|चाल॥ धरमतणुं एकाम कहीजई, साहमीवछल वेगि वहीजई। दसपुर नगर वाहिर बे भाई, चन्द्रप्रभ देहरई रह्या जाई ।१।। चन्द्रप्रभ प्रणमी करि, लखमण नगर मझारि । राजभवनि भोजन भणी, पहुतउ परम उदार ।।
॥चाल॥ पहुतउ परम उदार कुमार देखी राजा कहइ सूयार । एहनइ भोजन द्यउ अति सार, एकोइ पुरुष रतन अवतार ||२|| कहई लखमण वाहरि अछइ, मुझ वांधव परिसिद्ध । अणजीम्यां जीमू नहीं, द्यइ मुझ भोजन सिद्ध ।
॥चाल॥ द्यइ भोजन राजा अति ताजा, पंचामृत लाडु नइ खाजा ॥ लखमण राम समीप ले आवs, भोजन जिमिनई आणंद पावइ ।।४।। राम कहई लखमण प्रतई, भलपण देखि भूपाल ॥ अणओलख्यां पणि आपीयउ, तुझ भोजन ततकाल ।।